वर्ष 2020 में प्रकशित अंक




अंक 17 – अनुक्रमणिका
| सम्पादकीय | महेश सिंह | 1-6 |
| साहित्य एवं संस्कृति | ||
| हिंदी साहित्य में गांधीवादी विचारों का प्रभाव | डॉ. दिग्विजय कुमार शर्मा | 7-14 |
| राष्ट्रभाषा हिन्दी के सन्दर्भ में गांधी का चिन्तन एवं दर्शन | डॉ. अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव | 15-21 |
| साहित्य, समाज और मीडिया | उर्मिला कुमारी | 22-28 |
| ग़ालिब जो प्यार के प्रत्येक क्षण का शायर है | तेज प्रताप टंडन | 29-33 |
| लोक परम्परा में होली | डॉ. संध्या सिलावट | 34-38 |
| रमणिका गुप्ता और आदिवासी जीवन की कविताएँ | पंकज शर्मा | 39-46 |
| चमारों की गली : यथार्थ का दस्तावेज़ | रवि कुमार पाण्डेय | 47-52 |
| उस जनपद का कवि हूँ : त्रिलोचन | अमित कुमार | 53-58 |
| प्रगतिवादी कविता में गाँव : पूर्वराग से मुक्ति | रामलखन कुमार | 59-70 |
| दलित साहित्य की शिल्पगत विशेषताएँ | मिनहाज अली | 71-81 |
| प्रेमचंद के उपन्यासों में नारी की पारिवारिक स्थिति का चित्रण | डॉ. प्रकाश कुमार अग्रवाल | 82-89 |
| भीष्म साहनी का कालजयी उपन्यास ‘तमस’ | मुल्ला आदम अली | 90-99 |
| नासिरा शर्मा के ‘अक्षयवट’ में संस्कृति संगम | डॉ. विजिता विजयन | 100-107 |
| ‘वाहन’ उपन्यास में चित्रित वैयक्तिक महत्वाकांक्षा के सामाजिक पक्ष | जे. सुगंधा | 108-113 |
| पहाड़ी जीवन का यथार्थ स्वरूप : थोकदार किसी की नहीं सुनता | मोनिका पन्त | 114-121 |
| विकास बनाम पर्यावरणीय संकट : वर्तमान हिमालय के परिप्रेक्ष्य में हिडिम्ब उपन्यास की प्रासंगिकता | शरण्य मोहन के | 122-125 |
| सॉफ्ट कॉर्नर : आदमी के इर्द-गिर्द घूमती कथाएँ | डॉ. एकता मंडल | 126-133 |
| इंसानियत बड़ी या जाति | रूबी | 134-137 |
| आज के अतीत : सहजता का सौन्दर्य | अजय चन्द्रवंशी | 138-142 |
| हिंदी की स्त्री-आत्मकथाओं में इक्कीसवीं सदी की भारतीय स्त्री का सच | अम्बिका कुमारी | 143-148 |
| भाषा प्रौद्योगिकी में हिंदी का वर्चस्व | विद्या राज | 149-152 |
| भारत की वर्तमान चुनौतियाँ और साहित्य : पर्यावरण के विशेष संदर्भ में | दिगंत बोरा | 153-158 |
| नाटक एवं रंगमंच | ||
| फ़िल्म एवं नाट्यकला के संदर्भ में सौंदर्यशास्त्र व व्याख्या सिद्धान्त का महत्व | नितप्रिया प्रलय | 159-167 |
| मीडिया और सिनेमा | ||
| प्रिंट मीडिया का बदलता स्वरूप | डॉ. सुरेश कानडे | 168-171 |
| सशक्त होती हिन्दी फिल्मों की नायिका | डॉ. कुसुम संतोष विश्वकर्मा | 172-182 |
| अंतरराष्ट्रीय संबंध | ||
| इक्कीसवीं सदी में भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध और अमेरिका का प्रभाव | डॉ. कपिल खरे | 183-195 |
| कहानी | ||
| शेष भाग आगामी अंक में … | राम नगीना मौर्य | 196-206 |
| सिंदूर एक बंधन | नीरज कुमार सिंह | 207-209 |
| कविताएँ | ||
| कविता पनिया की कविताएँ | 210-210 | |
| लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की कविताएँ | 211-213 | |
| आदित्य कुमार राय की कविताएँ | 214-221 | |
| डॉ.गोपाल प्रसाद ‘निर्दोष’ की कविताएँ | 222-224 | |
| डॉ. किरण बाला की कविताएँ | 225-228 | |
| परवेज शीतल की कविताएँ | 229-231 | |
| आकाश की कविताएँ | 232-233 | |
| बाबाराव मडावी की मराठी से हिंदी में अनुदित आदिवासी कविताएँ | दिलीप गिरहे | 234-236 |
| पुस्तक समीक्षा | ||
| प्रवासी कवि की कविताएँ – प्रकृति और जीवन के सहकार के लिए | प्रो. बी.एल. आच्छा | 237-241 |
अंक 18 – अनुक्रमणिका
| सम्पादकीय | ||
| महामारी में महामारी | महेश सिंह | 1-5 |
| साहित्य एवं संस्कृति | ||
| सांस्कृतिक संकट के दौर में ‘कविता’ | डॉ. महेश एस | 6-12 |
| विस्थापन का घाव जो कभी भरा ही नही : मैथिली लोकगीतों के संदर्भ में | रामलखन कुमार | 13-21 |
| ‘चम्बल की घाटी में‘ कविता पर एक टिप्पणी | अजय चंद्रवंशी | 22-29 |
| नई कविता और दुष्यंत कुमार | खुशबू कुमारी | 30-38 |
| नयी कविता में मूल्यबोध : विभिन्न संदर्भ | डॉ. असीत कुमार यादव ’अनभिज्ञ’ | 39-43 |
| हिन्दी ग़ज़ल में उर्मिलेश का योगदान | डॉ. जियाउर रहमान जाफरी | 44-49 |
| ओ.एन.वी. कुरुप्प की कविताओं में पारिस्थितिक-दर्शन | विनोद पी. | 50-55 |
| मूल खासी (जनजातीय) संस्कृति में मानवीय मूल्य | डॉ. अनीता पंडा | 56-62 |
| मुक्ति के फंदे में फँसता पुन्नी सिंह का किसान | डॉ. अमित कुमार | 63-69 |
| ऐ लड़की ; संवादों का ‘मुक्त सहचर्य | हिमा एम.एन. | 70-73 |
| राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में नारी अस्मिता एवं आधुनिकता | विवेकानन्द | 74-81 |
| दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक भावों का आख्यान-शेखरः एक जीवनी | डॉ. अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव | 82-87 |
| विभाजन के आईने में ‘झूठा सच’ | मुल्ला आदम अली | 88-96 |
| कमलेश्वर के कथा साहित्य में गांधी दर्शन का प्रतिफलन | विजयलक्ष्मी यादव | 97-104 |
| आदिवासी साहित्य और सवर्ण साहित्यकारों की भूमिका | डॉ. अमित कुमार साह | 105-111 |
| हिंदी साहित्य में पुनर्जागरण : एक दृष्टि | नीतिका कालड़ा | 112-116 |
| राष्ट्र, राष्ट्रीयता और आदिवासी | छविंदर कुमार | 117-123 |
| रंगमंचीय शिल्प | पवन भारती | 124-127 |
| राष्ट्रभाषा-विमर्श हिंदी विमर्श नहीं है… | रवि कुमार झा | 128-135 |
| समकालीन पारिस्थितिक चिंतन में भारतीय धर्मों की सार्थकता | षिजु.एस.जी | 136-140 |
| कोविड -19 और भारतीय अर्थव्यवस्था | ईशिका गोयल | 141-143 |
| शोध : अर्थ, परिभाषा और स्वरूप | एकता रानी | 144-147 |
| मीडिया और सिनेमा | ||
| सूचना के समान प्रवाह में डिजिटल माध्यमों की भूमिका | डॉ. गुरु सरन लाल | 148-152 |
| कहानी | ||
| फिर जहाज पर आयो | राम नगीना मौर्य | 153-165 |
| खामोशी | अमरेन्द्र सुमन | 166-176 |
| व्यंग्य | ||
| गई श्रद्धांजलि पानी में | अशोक गौतम | 177-179 |
| कविताएँ | ||
| महेश कुमार केशरी की कविताएँ | 180-184 | |
| राजकुमार जैन ‘राजन’ की कविताएँ | 185-187 | |
| रमेश कुमार सोनी की कविताएँ | 188-191 | |
| नीरजा हेमेन्द्र की कविताएँ | 192-193 | |
| रोहित प्रसाद पथिक की कविताएँ | 194-195 | |
| लव कुमार की कविताएँ | 196-199 | |
| शालिनी शालू ‘नज़ीर‘ की कविताएँ | 200-202 | |
| हरिहर झा की कविताएँ | 203-205 | |
| पुस्तक-समीक्षा | ||
| समाज के यथार्थ की अभिव्यक्ति है राजा सिंह की कहानियाँ | दीपक गिरकर | 206-209 |
| हिन्दी दलित आत्मकथाओं के साथ सृजनात्मक सहयात्रा | डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे | 210-213 |
अंक 19 – अनुक्रमणिका
| दो शब्द | महेश सिंह | 1-2 |
| संपादकीय | डॉ. पिंटू कुमार | 3-7 |
| खंड-1 : मीणी भाषा | ||
| मीणा आदिम समुदाय : आदिकाल से अब तक | हरिराम मीणा | 9-16 |
| अब तक के भाषाई सर्वेक्षण | डॉ. पुखराज जाँगिड़ | 17-26 |
| मीणी भाषा का उद्भव और विकास | डॉ. पिंटू कुमार | 27-67 |
| बावन हाड़ौती मीणी : एक परिचय | चन्दा लाल चकवाला | 68-72 |
| नागरचाळी मीणी का विषय-वैविध्य | राम कल्याण मीणा | 73-77 |
| आंतरी मीणी का परिचयात्मक अध्ययन | ख्यालीराम मीना | 78-82 |
| ‘माड़ी’ के कलात्मक-रूप | डॉ. भीम सिंह, डॉ. सुशीला मीणा | 83-87 |
| देशज-भाषा में लोकजीवन | डॉ. भीम सिंह | 88-91 |
| संसार के पर्यावरण की रक्षक धराड़ी प्रथा | पी.एन.बैफलावत | 92-99 |
| पुरखौती गीतों में मीणी मातृभाषा, संस्कृति और इतिहास | डॉ. हीरा मीणा | 100-128 |
| मीणी भाषा और उसमें अभिव्यक्त लोक सांस्कृतिक विरासत | ख्यालीराम मीणा | 129-138 |
| आदिवासी जीवन केन्द्रित कहानियों पर ‘मीणी भाषा’ का प्रभाव | रविन्द्र कुमार मीना | 139-148 |
| खंड – 2 : मीणी भाषा का साहित्य | ||
| कहानी | ||
| बड़द की मौत्य | हरिराम मीणा | 150-153 |
| लाडो ठेका पै | चन्दा लाल चकवाला | 154-159 |
| ज्यब बदिया बिकी | डॉ. पिंटू कुमार | 160-162 |
| संस्मरण | ||
| झूपडा को जूणो बळीन्डो | चन्दा लाल चकवाला | 163-166 |
| जुल्मी | विजय सिंह | 167-171 |
| कविता | ||
| सिंधुघाटी की मोट्यारिन | डॉ. हीरा मीणा | 172-177 |
| म्हांकी पचाण छ: न्यारी | दीपिका मीणा | 178-179 |
| खेतां की रूखाळी/ मायड | चन्दा लाल चकवाला | 180-181 |
| हां, मं भूल्यो कोनि | विजय सिंह | 182-183 |
| गैबी कोरोना / बोट की लाज राख ज्यो | कैलाश चन्द्र ‘कैलाश’ | 184-185 |
| बालापण सूं गौणा त्यक | सुमेर राजौली | 186-187 |
| लोक रंग | ||
| हेला ख्याल : एक लोकप्रिय गायकी | हर सहाय मीना | 188-190 |
| फैणी को फळ | रामकेश मीणा | 191-197 |
| मीणी के कलात्मक रूप : आदिवासियत | रामकरण (लोक गायक) | 198-204 |
| या बिगित की बेम्यारी | विष्णु मैनावत (लोक गायक) | 205-208 |
| खोळ कपाड़ी की आंख्य | चेतराम गुरूजी (पद मेडिया) | 209-211 |
| पचवारां का फळ | रामू मास्टर (लोक गायक) | 212-213 |
