क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण महिला सुरक्षा के लिए राष्ट्रव्यापी स्तर पर अत्यंत जरूरी है।

प्रियंका सौरभ

(गरीबी और विकास को कम करने के लिए लैंगिक समानता भी एक पूर्व शर्त है। महिलाओं की क्षमता पर अंकुश लगाने के लिए लिंग को अनुचित निर्धारण कारक नहीं होना चाहिए। भारत को इस लक्ष्य का एहसास करना चाहिए कि महिलाओं को अच्छी शिक्षा सुनिश्चित करने से लेकर समान पारिश्रमिक के साथ सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करे।)

महिलाओं की उन्नति और महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता की उपलब्धि मानव अधिकारों का मामला है और इसे सामाजिक न्याय के लिए महिलाओं के मुद्दे के रूप में अलगाव में नहीं देखा जाना चाहिए। वे एक स्थायी, न्यायपूर्ण और विकसित समाज बनाने का एकमात्र तरीका हैं। हालांकि, लैंगिक समानता के खिलाफ लगातार पितृसत्तात्मक मानसिकता और पूर्वाग्रह महिलाओं के अधिकारों की खराब मान्यता को जन्म देगा; जैसे पीछे होता रहा है।

भारत में महिलाओं के अधिकारों की गहरी-पूर्वाग्रहों और खराब मान्यता के बारे आर्थिक सर्वेक्षण 2018 ने उल्लेख किया है कि एक पुरुष बच्चे की इच्छा ने भारत में 0 से 25 साल के बीच 21 मिलियन “अवांछित” लड़कियों को जन्म दिया है। नीति आयोग  द्वारा जारी नवीनतम स्वास्थ्य सूचकांक के अनुसार, जन्म के समय में भारत की लड़की से लड़के के लिंग अनुपात में 21 बड़े राज्यों में से 17 में गिरावट आई है। यह अवैध सेक्स प्रकटीकरण के बाद महिला चयनात्मक गर्भपात पर अंकुश लगाने की देश की क्षमता में विफलता का संकेत देता है।

हाल ही में मार्च 2020 तक, तमिलनाडु के उसिलामपट्टी में शिशुहत्या के मामले सामने आए। गहरी अंतर्ग्रही पूर्वाग्रह विडंबना यह है कि यह पुरुषों और महिलाओं दोनों के बीच  वास्तविक समानता के खिलाफ मौजूद है। पीआईएसए परीक्षण के आंकड़ों के अनुसार, यह धारणा कि “लड़के गणित में बेहतर हैं” निराधार है। फिर भी यह विश्वास अभी भी मौजूद है।महिलाओं के खिलाफ अपराध एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में अपराध 3,793 प्रति मिलियन से बढ़कर 2017 में 3,886 प्रति मिलियन हो गया। महाराष्ट्र के बाद 56,011 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश शीर्ष पर रहा।

कॉरपोरेट्स जगत में महिलाएं अभी भी पुरुषों की औसत 79 प्रतिशत आय अर्जित करती हैं, जो फॉर्च्यून 500 के सीईओ पदों का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा रखती हैं, और वैश्विक बोर्ड के औसतन 17 प्रतिशत पदों का प्रतिनिधित्व करती हैं। महिलाओं को अनौपचारिक नेटवर्क तक पहुंच की कमी है जो उच्च-प्रोफ़ाइल परियोजनाओं में काम करने के अवसर प्रदान करते हैं, जिसमें विदेश में सम्मेलनों में भाग लेना या नौकरी के अवसर शामिल हैं। प्रारंभिक विवाह लड़की की सहमति के साथ या उसके बिना जल्दी शादी, हिंसा का एक रूप है, क्योंकि यह लाखों लड़कियों के स्वास्थ्य और स्वायत्तता को कम करती है।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाना और लागू करने के साथ-साथ  विवाह, तलाक और हिरासत कानून, विरासत कानूनों और संपत्ति के स्वामित्व में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करके लिंग समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियों को विकसित करना और लागू करना महत्वपूर्ण है। वित्तीय स्वतंत्रता के लिए महिलाओं को सशुल्क रोजगार तक पहुँच में सुधार करना और समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

हालाँकि लिंग आधारित बजट के कारण महिला केन्द्रित विकास योजनाएँ बनी हैं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर अपराध निगरानी डेटा एकत्र करने की प्रणाली में सुधार के लिए सुरक्षित शहरों की योजना और महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए निर्भया फंड का उपयोग करना होगा। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों को संभालने के लिए सेवा प्रदाताओं और कानून प्रवर्तन अधिकारियों को क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण महिला सुरक्षा के लिए राष्ट्रव्यापी स्तर पर अत्यंत जरूरी है।

दुराचारियों के लिए कार्यक्रम तैयार करने में पुरुष भागीदारी सुनिश्चित करें। जीवन कौशल और व्यापक समान सेक्स शिक्षा पाठ्यक्रम के रूप में समतावादी लिंग मानदंडों को बढ़ावा देना युवा लोगों को सिखाया जाना जरूरी है।  भारत ने एसडीजी गोल 5 के तहत लैंगिक समानता के लिएप्रयास किये है, ताकि सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और हिंसा के सभी प्रकारों को खत्म किया जा सके और महिलाओं को आर्थिक संसाधनों के समान अधिकार और संपत्ति के स्वामित्व तक पहुंच प्रदान करने के लिए सुधार किए जा सकें।

गरीबी और विकास को कम करने के लिए लैंगिक समानता भी एक पूर्व शर्त है। महिलाओं की क्षमता पर अंकुश लगाने के लिए लिंग को अनुचित निर्धारण कारक नहीं होना चाहिए। भारत को इस लक्ष्य का एहसास करना चाहिए कि महिलाओं को अच्छी शिक्षा सुनिश्चित करने से लेकर समान पारिश्रमिक के साथ सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करे।

प्रियंका सौरभ 
रिसर्च स्कॉलर, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, शाहपुर रोड, सामने कुम्हार धर्मशाला,
आर्य नगर, हिसार (हरियाणा)
kavitaniketan333@gmail.com

बदलते परिदृश्य में स्त्री का स्वरूप

-स्वाति सौरभ

वक्त के साथ सोच और भारत में स्त्रियों की स्थिति में बहुत बदलाव हुए हैं। आज जहाँ नारी पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, वहीं किसी-किसी क्षेत्र में तो पुरूषों को पीछे छोड़ती भी नजर आ रही हैं। पुरुष प्रधान समाज में प्राचीन काल से ही नारी कई रूढ़िवादी परम्पराओं की बेड़ियों में बंधी रही है। जो आज कम जरूर हुई हैं परन्तु खत्म नहीं। कल भी नारी पर ही उंगली उठती थी और आज भी कटघरे में नारी ही खड़ी रहती है। चुनौतियां खत्म नहीं हो रही बल्कि बदलते परिदृश्य में नए नए रूपों में सामने खड़ी हो रही हैं।

ये भी कटु सत्य है कि वक्त चाहे कितना भी बदल जाए लेकिन औरत को अपने हक के लिए पहले खुद को साबित ही करना पड़ा है। रामायण में जहाँ सीता के चरित्र पर ही उंगली उठी, राम पर नहीं। सीता को ही अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी और धरा में समाकर खुद को पवित्र साबित करना पड़ा। महाभारत में भी द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया गया, बिना उनकी मर्ज़ी के। क्योंकि शायद औरत होने के कारण उनसे उनकी मर्ज़ी जानना जरूरी नहीं समझा गया। आज भी वक्त जरूर बदला है, नारी की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार हुई है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नारी की क्षमता पर आज भी सवाल खड़े किए जाते हैं। जिसका एक ताज़ा उदाहरण है अभी हाल में 17 वर्षों से चल रही लंबी कानूनी लड़ाई के बाद महिलाओं को सेना में बराबरी का हक मिला है। इस कानूनी लड़ाई में विपक्ष की ओर से दलील में महिलाओं की शारीरिक, मानसिक क्षमताओं पर सवाल उठाए गए थे। जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी कि सरकार अपनी मानसिकता बदले। हम महिलाओं पर एहसान नहीं कर रहे, उन्हें उनका हक दे रहे हैं। अजीब बात है न ! नारी की क्षमता पर ही सवाल क्यों? सुप्रीम कोर्ट द्वारा मिली इस जीत ने ये तो जरूर साबित कर दिया कि महिलाओं को कमजोर समझने वाली मानसिकता में अब बदलाव लाने की जरूरत है।

आज नारीशक्ति ने लगभग हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है। सिर्फ घर की ही शोभा बनकर आज नारी नहीं रह गई है, जिस भी क्षेत्र में काम करती हैं अपनी निष्ठा पूर्वक काम करने के तरीके से, अपनी मेहनत से खुद की अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं। आईएमएफ जैसी संस्था की चीफ भी बनकर नारी ने दिखाया दिया है कि कोई भी क्षेत्र या कार्य उनसे अछूता नहीं है। बैंक, रेलवे, टीचिंग जैसे क्षेत्रों में सेवा देकर अपनी पहचान बना चुकी हैं वहीं अब खेल के क्षेत्र में भी अपना दमखम दिखाया है। एवरेस्ट की चोटी पर भी फतह करने वाली नारी की शारीरिक क्षमता पर सवाल उठाया जाना कितना सही है! जो स्त्री 25-30 वर्षों तक अपने घर रहकर जब शादी कर दूसरे के घर जाती है तो उस परिवार को भी अपना बनाने का प्रयास करती है। जो स्त्री दूसरे परिवार में खुद को शामिल कर लेती है, उन्हें अपना बना लेती है, उनकी मानसिक क्षमता पर सवाल उठना क्या सही है?

नारी मां बनकर अपनी जिम्मेदारियां संभालती हैं तो पत्नी बनकर अपना धर्म भी निभाती हैं। बेटी बनकर घर की शोभा बढ़ाती हैं तो बहन बनकर साथ भी निभाती हैं और जब जरूरत पड़ती है तो यही नारी शस्त्र भी उठाती हैं। अगर नारी ने हाथ में चूड़ी, गले में मंगलसूत्र और मांग पर सिंदूर लगा कर अपने संस्कारों का परिचय देती हैं तो यही नारी रानी लक्ष्मीबाई बनकर अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए तलवार भी उठाती हैं। सावित्री बनकर यमराज से पति के प्राण भी वापस मांगकर लाने की क्षमता रखती हैं। अगर नारी की सहनशक्ति धरा स्वरूप है तो यही नारी जरूरत पड़ने पर चंडी का भी रूप धारण करती है।

इस पुरुष प्रधान समाज ने कई तरह के कुरीतियों और अंधविश्वासों को संस्कार और परम्परा का नाम देकर महिलाओं को हमेशा से ही जंजीरों में बांधे रखने की कोशिश की है। जैसे – जैसे महिलाएं शिक्षित होती गईं खुद को इन जंजीरों से तोड़कर बाहर निकालने में सफल हुई हैं। लेकिन आज के दौर में भी कई परम्पराओं की बेड़ियों से बंधी महिलाएं, अंधविश्वास को आस्था का नाम देती नजर आती हैं। परन्तु वक्त में काफी हद तक बदलाव हुए हैं और होते भी रहेंगे। महिलाएं हर क्षेत्र में खुद को साबित कर चुकी हैं और अपना परचम भी लहरा रही हैं और लहराती रहेंगी।

स्वाति सौरभ
भोजपुर, बिहार
sourabh.swati6@gmail.com