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अंक 28 अक्तूबर-दिसंबर 2022 प्रकाशित कर दिया गया है.
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अनुक्रमणिका
सम्पादकीय | |
बीतते वर्ष की अंतिम शाम : कुछ बातें कुछ यादें | डॉ. महेश सिंह |
आलेख/शोध-आलेख | |
चारण कवियों की गौरवगाथा और उनका साहित्य सृजन | शंकर लाल माहेश्वरी |
रहीम के दोहे जीवन की पाठशाला : वर्तमान में प्रासंगिकता | डॉ. नवीन कुमार |
मध्यकालीन संत परंपरा व सामाजिक चुनौतियां | अमित कुमार मल्ल |
आख्यान-काव्य के रूप में महाकाव्य और प्रेमाख्यान की तुलना | नौशाद अली |
वली दकनी (दक्खिनी) के काव्य में राम और कृष्ण | राहत जमाल सिद्दीक़ी |
संस्कृत एवं हिंदी साहित्य के सेतु : भारतेंदु हरिश्चंद्र | डॉ. विजय कुमार प्रधान |
राष्ट्रीय चेतना के वाहक भारतेन्दु हरिश्चंद्र | पंचदेव प्रसाद |
केदारनाथ अग्रवाल की किसान चेतना | मुरली मनोहर सिंह |
प्रयोगधर्मी कवि : मुक्तिबोध | राजेन्द्र परदेसी |
मगध में इतिहास और वर्तमान का अंतर्द्वंद (श्रीकांत वर्मा कृत ‘मगध’ काव्य संग्रह के संदर्भ में) | निलेश शिवाजी देशमुख |
हिन्दी की वीणा हैं गोपाल दास ‘नीरज‘ | कृष्ण कुमार यादव |
स्त्री-पुरुष के सहज संबंध की स्वीकार्यता का काव्य | पूजा साह |
हिंदी कविता में आदिवासी जीवन संघर्ष : एक विश्लेषण | डॉ. शिराजोदीन |
दुनिया के बाज़ार में : एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण | पैड़ाला रवींद्रनाथ |
साठोत्तरी हिंदी ग़ज़लों में राजनीतिक बोध | लोकेश कुमार |
धर्म का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण वाया हिंदी कहानी | डॉ. लिजि के जोस |
आधुनिक जीवन दृष्टि के प्रणेता निर्मल वर्मा (कथा साहित्य के संदर्भ में) | डॉ. वीणा. जे |
‘यही सच है’ कहानी शीर्षक की सार्थकता | विवेकानन्द |
महज ‘गोल्डन सिटी’ बनाने से गोल्ड नहीं होगी आदिवासियों की दुनियां | डॉ. पवन कुमार रावत |
भारतीय समाज में शोषण के विरुद्ध वैचारिक पड़ताल (‘भाईचारा’ कहानी के विशेष संदर्भ में) | नेहा |
समकालीन हिन्दी कहानियों में अभिव्यक्त यथार्थ | षैजू के |
जीवन के जटिल प्रश्नों के सरल कथाकार : तेजेन्द्र शर्मा | डॉ. जया आनंद |
‘रेहन पर रग्घू’ उपन्यास में पात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन : एक अवलोकन | शालू |
स्त्री प्रतिरोध का दस्तावेज़ : मगहर की सुबह | मीनु शिवन |
‘थमेगा नहीं विद्रोह’ उपन्यास में शिल्प | डॉ. संजय आटेड़िया |
‘मढ़ी का दीवा’ उपन्यास में सामाजिक यथार्थ (दलित विमर्श के परिप्रेक्ष्य में) | डॉ. कुलवंत सिंह |
अभिमन्यु अनत के उपन्यास साहित्य में युगीन परिदृश्य | डॉ. दिनेश कुमार गुप्ता |
‘रंगमिलीर हाँहि’ उपन्यास में चित्रित कार्बी जनजाति और समाज व्यवस्था | मनसा नेउग |
प्रेमचन्द और गाँधी-चिंतन | मिन्नु जोसेफ |
हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श | बाबूलाल मीना |
आठवें दशक का स्त्री लेखन और स्त्री विमर्श | डॉ. प्रतिमा प्रसाद |
कला, संस्कृति और सभ्यता के कुबेर | सुनीता मिश्रा |
कन्नड लोक साहित्य : एक परिचय | डॉ. श्रीधर पी डी |
‘झूठ पुराण’ और ‘पंचम वेद’ नाटकों में अभिव्यक्त बाल जीवन का यथार्थ | चिप्पी एम आर |
रेणु के रिपोर्ताज और ग्रामीण सौन्दर्य-दृष्टि | शिवम कुमार |
डायरी साहित्य में मोहन राकेश की डायरी का महत्व | मनोज शर्मा |
चुप्पियाँ और दरारें : हिजाब में कैद स्त्रियों का बयान | डॉ. एकता मंडल |
साझी विरासत के रचनाकार : रहनवर्दजरयाब (भारत और अफ़ग़ानिस्तान के विशेष संदर्भ में) | सय्यद अली मोहम्मद |
मीडिया और सिनेमा | |
आजादी के पचहत्तर वर्ष और बदलता मीडिया | डॉ. गुरु सरन लाल |
कब तक रुके रहेंगे ये फैसले उर्फ सिनेमा में न्याय व्यवस्था का चित्रण | राकेश कबीर |
‘यही सच है’ कहानी और ‘रजनीगंधा’ फिल्म में दीपा का अंतर्द्वंद्व | ज्ञान चन्द्र पाल |
सिनेमा के गीतों में शैलेंद्र की साहित्यिक संवेदना | कु. अनीता |
भूमंडलीकरण के दौर में साहित्य और सिनेमा का समन्वय | डॉ. रविकांत जाटव |
विस्थापन की समस्या और ‘शिकारा’ | कृष्ण मोहन |
रेखाचित्र | |
यादों का बचपन | डॉ. लोकेन्द्रसिंह कोट |
यात्रा-वृतांत | |
धन्यवाद लद्दाख – तुम्हारी यादों में | डॉ. सुनील कुमार शर्मा |
कहानी | |
वसीयत | अनुजीत इकबाल |
हरे कृष्ण हरे कृष्ण… | डॉ. जोतिमय बाग |
नीरज या नीरजा | डॉ. नीहारिका |
हम न मरब | रवि कुमार पाण्डेय |
कविताएँ | |
लव कुमार लव की कविताएँ | |
खेमकरण ‘सोमन’ की कविताएँ | |
परवेज़ शीतल की कविताएँ | |
मिलीशा महापात्र की कविताएँ | |
कैलाश मनहर की गीतिकाएँ | |
पुस्तक-समीक्षा | |
जातीय शोषण का हलफ़नामा | अनुज कुमार |
नारी मन की मुखरता और वैचारिक सूत्रों की तलाश | विवेक रंजन श्रीवास्तव |
ताँका साहित्य के दो कालजयी रत्न | देवेन्द्र नारायण दास |