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अंक-34, अप्रैल-जून 2024 प्रकाशित कर दिया गया है
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अनुक्रमणिका
संपादकीय | |
अफ़साना ऑफ़ हलवा-ए-लोकतंत्र | डॉ. महेश सिंह/1 |
आलेख/शोध-आलेख | |
संवेदनात्मक संक्रमण का उपन्यास-‘निरुपमा’ | अंगद तिवारी/3 |
कुंठा, अवसाद और मोहभंग का क्रमिक दस्तावेज़ : आधा गाँव | गौरव कुमार/11 |
कामकाजी महिला का जीवन और शाल्मली उपन्यास | स्मिता साह/19 |
‘ठकुरी बाबा’ : मानवीय सहानुभूति और सामाजिक संवेदनशीलता | डॉ. नवाब सिंह/25 |
अनुभव से उत्पन्न पीड़ा हैं सआदत हसन मंटो की कहानियाँ | डॉ. कुमारी उर्वशी/36 |
रघुवीर सहाय की कहानियाँ | डॉ. अजय कुमार चौधरी/46 |
संत रैदास की सामाजिक चेतना | प्रियंका/50 |
संत रैदास और उनके काव्य की प्रासंगिकता | कु. सुषमा/56 |
मीरा के काव्य का पुनरावलोकन | सचिन कुमार मीणा/60 |
स्वाधीनता संग्राम में सुभद्रा कुमारी चौहान का साहित्यिक योगदान | सोनिया/65 |
छायावादी काव्य में राष्ट्रीय जागरण | शोभित द्विवेदी/69 |
आदिवासी हिंदी लेखिका एलिस एक्का | नेहा यादव/75 |
‘क्या तुम जानते हो’ कविता की प्रासंगिकता | डॉ. शिराजोदीन/79 |
हिंदी गजलों में अंग्रेजी के तत्व | डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री/83 |
समकालीन साहित्य में अभिव्यक्त पर्यावरणीय समस्याएँ | धन राज/88 |
पुरातत्व का रोमांस : प्राचीन सभ्यताओं की रोमांचक कहानियाँ | अजय चन्द्रवंशी/95 |
हमें बहुत कुछ सीखना है (भारत की एकांतिक खोज: पॉल बर्टन) | अजीत आर्या/103 |
शब्दशक्ति : स्वरूप विश्लेषण | डॉ. बसुन्धरा उपाध्याय/113 |
रेखा चित्र | सुनीता मिश्रा/118 |
भारतीय उच्च शिक्षा का भविष्य | डॉ. सुमन शर्मा/121 |
मीडिया और सिनेमा | |
पत्रकारिता के विवेक-निर्माण का युग और ‘सरस्वती’ | अमित कुमार सिंह/124 |
हिंदी सिनेमा और वेश्यावृति : विशेष संदर्भ ‘हीरामंडी : द डायमंड बाजार’ | अखिलेश कुमार मौर्य/127 |
व्यंग्य | |
निन्यानवें का फेर | डॉ. दलजीत कौर/130 |
कहानियाँ | |
प्रेम का एक सूत्र | अमित कुमार चौबे/132 |
अग्निमुखा | श्रीमती रजनी बस्तरिया/139 |
दांव पर जिन्दगी | श्यामल बिहारी महतो/148 |
बदले हुए समीकरण | विनीता शुक्ला/155 |
लघु-कथा | |
भूख | डॉ. शबनम आलम/158 |
कविताएँ | |
केशव तिवारी की कविताएँ/159 | |
अचल पुलस्तेय की कविताएँ/161 | |
रमेश कुमार सोनी की कविताएँ/163 | |
मनोज कुमार शर्मा ‘अवशेष’ की कविताएँ/165 | |
डॉ. सुनील कुमार शर्मा की कविताएँ/167 | |
डॉ. प्रिया.ए की कविताएँ/169 | |
पुस्तक समीक्षा | |
सर्वहारा जीवन और अपने हिस्से का आकाश तलाशते लोग | रमेश शर्मा/170 |
कर्म भूमि का सृजन लोक- टूटी पेंसिल | डॉ. मधु संधु/175 |
गतिविधियाँ | |
‘मीणी भाषा और साहित्य’ पुस्तक का लोकार्पण, | प्रेमचंद जयंती पर एकदिवसीय सेमिनार |