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अंक-36, अक्टूबर-दिसंबर 2024 (बौद्ध एवं नाथ साहित्य विशेषांक ) प्रकाशित कर दिया गया है
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अनुक्रमणिका
सम्पादकीय | |
समय के अँधेरे में आशा के दीप | डॉ. राम प्रताप सिंह/ 1 |
विरासत | |
बुद्ध के विचार/ 6 | |
गोरखनाथ की बानी/ 8 | |
एशिया की ज्योति (लाइट ऑफ एशिया) -चतुर्थ सर्ग | हृषिकेश शरण/ 10 |
वैचारिकी एवं शोध-आलेख | |
गौतम बुद्ध : भीतर और बाहर को बदलो | शम्भुनाथ/ 19 |
भारतीय ज्ञान परंपरा और बुद्ध | चित्तरंजन मिश्र/ 22 |
बुद्ध मोक्षदाता नहीं मार्ग दाता थे | डॉ.रामाधीन/ 28 |
बुद्ध के धम्म में निहित है मानव समाज का कल्याण | डॉ. अरविन्द सिंह/ 32 |
भारतीय चिन्तन-परम्परा और बौद्ध साहित्य | विमलेश कुमार मिश्र/ 36 |
भारतीय परंपरा में बुद्ध और गांधी | विनोद मल्ल/ 43 |
हिन्दी की क्रान्तिकारी धारा के आदि कवि : सरहपा | सदानन्द शाही/ 47 |
बुद्ध की शिक्षा से मुक्ति संभव है | डॉ. लोकेन्द्रसिंह कोट/ 54 |
कहाँ गये गोरख के जोगी | डॉ. आर.अचल पुलस्तेय/ 57 |
दलित चेतना का उत्थान और बौद्धमत | प्रो. गोरख नाथ/ 60 |
भारतीय ज्ञान परंपरा में बौद्ध एवं नाथ चिंतन | कु. सुषमा/ 64 |
समकालीन सन्दर्भों में बौद्ध और नाथ साहित्य | चांद शेख/ 68 |
नाथ साहित्य और अग्रगण्य गोरखनाथ | डॉ. षैजू के/ 72 |
बौद्ध धर्म में पर्यावरण चिंतन | डॉ. उर्मिला शर्मा/ 79 |
वैचारिक अवधारणा और बौद्ध धर्म | डॉ. आशीष कुमार ‘दीपांकर’/ 83 |
बौद्ध-सिद्धों का दर्शन : सामाजिक जड़ता पर प्रहार | डॉ. अनिल कुमार/ 87 |
नाथसिद्ध : एक परिचयात्मक अध्ययन | डॉ. राजेश कुमार/ 92 |
आधुनिक हिंदी काव्य में बौद्ध चिंतन का प्रभाव | मोनिका धाकड़ व लवनीश धाकड़/ 96 |
बौद्ध दर्शन और हिंदी साहित्य | डॉ. छोटू प्रसाद ‘चंद्रप्रभ’/ 101 |
संत कबीर के साहित्य में बौद्ध धर्म का दिग्दर्शन | डॉ. सियाराम/ 104 |
बौद्ध चिंतन का हिंदी साहित्य पर प्रभाव | डॉ. शोभारानी सिंह चौधरी/ 112 |
बाणभट्ट की आत्मकथा में बौद्ध दर्शन | डॉ. कुमारी उर्वशी/ 118 |
हिंदी साहित्य पर बौद्ध चिन्तन का प्रभाव | राज कुमार/ 123 |
भारत में बौद्ध धर्म के अष्ट-महास्थान एवं पर्यटन की संभावनाएं | डॉ. प्रेम प्रकाश राजपूत/ 127 |
यशपाल के उपन्यास दिव्या पर बौद्ध चिंतन का प्रभाव | डॉ. किरण तिवारी/ 134 |
बुद्ध शासन की सार्वकालिक प्रासंगिकता | डॉ. रमेश रोहित/ 138 |
बुद्ध : विज्ञान और संविधान | संपूर्णानंद मल्ल/ 143 |
तिब्बत का बौद्ध आयुर्विज्ञान : सोवा रिंग्पा | डॉ. आर.अचल पुलस्तेय/ 145 |
बौद्ध परंपरा में विपश्यना : जीवन जीने की कला | नालंदा सतीश / 148 |
विपश्यना की मेरी समझ | डॉ. अंगद सिंह कुशवाहा / 153 |
कविताएँ | |
दो कविताएँ | ज्ञानेंद्रपति/ 154 |
महाकारुणिक | दिनेश कुशवाह/ 158 |
दो कविताएँ | सदानन्द शाही/ 161 |
पाँच कविताएँ | लव कुमार/ 162 |
बुद्धत्व का बीज | गोलेन्द्र पटेल/ 168 |
सुनो न ! | वंदना सिंह/ 170 |
पुस्तक समीक्षा | |
भारतीय लोक परम्पराओं और बौद्ध धम्म-संस्कृति के संबंधों की पुनर्व्याख्या का महनीय प्रयास | डॉ. रवीन्द्र सिंह/ 172 |