शिल्पी शर्मा ‘निशा’ की कविताएँ
1. कल सुनना मुझे
आज थोडा व्यस्त हूँ
मैं बचपन में जी रही हूँ ।
जमीन पर कुछ उकेरते हुए
मूरत बना रही हूँ ।
रुको कुछ कहना है
कल सुनना मुझे ……
मिट्टी लगे हाथों से चेहरा साफ किया
देखूँ , कैसी लग रही हूँ ?
बचपन एक खूबसूरत सपना है
जिसे मैं थोड़ा जी रही हूँ ।
वादा है , आज नहीं
कल सुनना मुझे …….
जली हुई रोटी घूमकर खा रही हूँ
आज बहुत खुश हूँ ।
माँ ने रोटी में नमक घी लगाया है ।
कुछ देर रुक जाऊं
मलाई खा के आऊँगी जब
कल सुनना मुझे ……..
एक बात बताओ
आज कमी क्या है ?
सब कुछ तो है मेरे पास
लेकिन!
“मैं हूँ पर हम नहीं”
अभी नींद में हूँ
कल सुनना मुझे ……..।
2. मेरे अनवरत प्रयास
मेरे संघर्ष के दिन में ,
कोई दिखा न राहों में ।
किसी ने हाथ न थामा ,
भरी थी धूल आँखों में ।
चुभा जब काँच का टुकड़ा ,
चीख निकली अंधेरे में ।
दूर तक जाने की चाहत ,
घाव बाँधा रूमालों से ।
अंधेरी रात सावन की ,
न कुछ सूझे निगाहों से ।
मुझे जिद है पहुँचना है ,
दूर मंजिल की छावों में ।
हारकर रोने से अच्छा ,
जरूरी है मेरा चलना ।
छूटा परछाइयों का संग ,
अंधेरे में न कोई अपना ।
किया हिम्मत बिताये पल ,
नई राहें उजाला फिर ।
करूँ संघर्ष काँटों से ,
महक बिखरे मेरे जीवन में ।
3. हमजोली
मन करे आज बिना आँसुओं के रोऊँ
क्योंकि अतीत की सहेली ने आज दस्तक दी है ।
मैं अधीर हो उठी हूँ
उससे जुड़ी पुरानी यादों में खो गई हूँ ।
आज मन खुश है
मन के समंदर में जैसे मोती मिल रहा है ।
उसने पूछा – तुम कैसी हो ?
ऐसा लगा जीवन का दर्द मिट गया !
राज की बात बताऊँ
मेरे ख्यालों की मलिका वो हमेशा बनी रही ।
दूर रहकर भी…
याद है वो दिन
जब उसने अपने दूर जाने की बात बताई
हंसी के फव्वारे संग सबने बधाई दी ।
तेरा दूर होना आज अचानक मिलना
तू याद थी , याद है , याद रहेगी ।
पूँछों तो नाम क्या है ?
तू मस्तिष्क के लिए प्रतिभा मन के लिए खुशबू है ।
शुक्रिया जिंदगी !
दूर जाकर वापस आने के लिए
कुछ पूछने के लिए कुछ बताने के लिए ।
4. प्रयत्न
यादों की नगरी में आज हलचल हुई ,
न जाने बेमौसम क्यों बारिश हुई ?
क्यों है इस तरह से खामोशी ,
क्यों छाई है हर तरफ मदहोशी ।
कुछ हुआ है मेरे और किताबों के बीच ,
मुझे बुलाये अक्षर के सितारों के बीच ।
बेचैन मन से मैं पढ़ती जाऊँ ,
तुम भरोसा दिलाती मैं करती जाऊँ ।
पास होकर भी आँखों को दिखे नहीं ,
क्या लिखूँ शब्दमाला से पूछे नहीं ।
बन्द आँखों से कागज उकेरती हूँ ,
क्या करूँ वर्णमाला में भाव मिले नहीं।
आज कुछ सीखने की तैयारी में हूँ ,
लकीरें लांघकर लिखने की खुमारी में हूँ ।
कहीं न रूठ जाय आज कलम मुझसे ,
शब्द की बाँसुरी कानों में सुनाऊँ उसके ।
किसी ने कहा गिरती हुई मूली हो ,
तुम अंधेरे में राह को भूली हो ।
शब्द के बाण उन पर न व्यर्थ करूँ ,
जो भी करूँ अभिमान से बढ़ती चलूँ ।
संपर्क : शिल्पी शर्मा “निशा” कुशीनगर , उत्तर प्रदेश. shilpa3717@gmail.com