शिल्पी शर्मा ‘निशा’ की कविताएँ
1. कल सुनना मुझे आज थोडा व्यस्त हूँ मैं बचपन में जी रही हूँ । जमीन पर कुछ उकेरते हुए मूरत बना रही हूँ । रुको कुछ कहना है कल सुनना मुझे …… मिट्टी लगे हाथों से चेहरा साफ किया देखूँ , कैसी लग रही…
1. कल सुनना मुझे आज थोडा व्यस्त हूँ मैं बचपन में जी रही हूँ । जमीन पर कुछ उकेरते हुए मूरत बना रही हूँ । रुको कुछ कहना है कल सुनना मुझे …… मिट्टी लगे हाथों से चेहरा साफ किया देखूँ , कैसी लग रही…
-जय चक्रवर्ती हिन्दी के समकालीन रचनाकारों में अशोक ‘अंजुम’ का नाम अत्यंत प्रतिभाशाली और प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों में गिना जाता है। सब जानते हैं कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी ऐसे साहित्यकार हैं जो जिधर चल पड़ते हैं, उधर ही रास्ता हो जाता है। काव्य की…
आत्महत्या यानि स्वयं द्वारा स्वयं की हत्या, जानबूझ कर बिना किसी की सहायता के, बिना दबाव के, चेतन मन से की गई वो क्रिया, जिसका परिणाम मृत्यु हो, उसी को आत्महत्या कहते है। समाजशास्त्री इमाइल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक में आत्महत्या को एक सामाजिक घटना…
–प्रियंका सौरभ (गरीबी और विकास को कम करने के लिए लैंगिक समानता भी एक पूर्व शर्त है। महिलाओं की क्षमता पर अंकुश लगाने के लिए लिंग को अनुचित निर्धारण कारक नहीं होना चाहिए। भारत को इस लक्ष्य का एहसास करना चाहिए कि महिलाओं को अच्छी…
समीक्षक : डॉ. रमेश तिवारी 1- ‘मॉरिशस के लेखक रामदेव धुरंधर की जुबानी’ की सार्थकता विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को डॉ. दीपक पाण्डेय की नवीनतम पुस्तक ‘मॉरिशस के लेखक रामदेव धुरंधर की जुबानी’ पुस्तक का लोकार्पण मुंबई के मुक्ति फाउंडेशन, अंधेरी वेस्ट के सभागार…
रेखा सैनी आधुनिक प्रबंध काव्यों के रचनात्मक आयाम उनके कवियों की सार्थक रचनाधर्मिता के ही प्रमाण है । इन प्रबंध काव्यों का प्रमुख सरोकार युगीन चेतना व मानवीय संवेदना की सशक्त अभिव्यक्ति है । मानवीय व्यक्तित्व, मानवीय प्रकृति व मानवीय सत्ता के संघर्ष व जिजीविषा…
रामचन्द्र पाण्डेय प्रयोगवादी कवियों में अग्रगण्य सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय शब्दों में नये अर्थ का अनुसन्धान करने वाले बल्कि यूँ कहें कि अर्थों मे नयी चेतना की जीवन्त झंकृति भरने वाले स्वर साधक रचनाकार हैं । उनकी रचनाओं का दायरा बहुत विस्तीर्ण है जिसमें प्रमुखतया…
कैद के अन्दर कैद देखा सड़कों को उदास गलियों को रोते हुए मैंने देखा सड़कों को सुबकते हुए समय बिलकुल थम गया हमें घर में कैद होना पड़ा और छोड़ना पड़ा सड़कों को सड़कों पर उदास। यह ऐसा समय था जिसमें सड़कों पर नहीं थे…
-स्वाति सौरभ वक्त के साथ सोच और भारत में स्त्रियों की स्थिति में बहुत बदलाव हुए हैं। आज जहाँ नारी पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, वहीं किसी-किसी क्षेत्र में तो पुरूषों को पीछे छोड़ती भी नजर आ रही हैं। पुरुष…
समीक्षक : पुनीता जैन आदिवासी गीत-परंपरा के वाचिक रूप में उनका सहज जीवन-बोध, प्रकृति-प्रेम, संस्कृति, स्थानीयता की मौलिक गंध मौजूद है जो उनकी आत्मा के संगीत और जीवन की स्वाभाविक लय के साथ अभिव्यक्त होती रही है। जबकि वर्तमान परिवेश में लिखी जा रही आदिवासी…