युवाओ में बढ़ती आत्महत्या
आत्महत्या यानि स्वयं द्वारा स्वयं की हत्या, जानबूझ कर बिना किसी की सहायता के, बिना दबाव के, चेतन मन से की गई वो क्रिया, जिसका परिणाम मृत्यु हो, उसी को आत्महत्या कहते है। समाजशास्त्री इमाइल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक में आत्महत्या को एक सामाजिक घटना बताया है। विश्व के 112 देशों के आत्महत्या के आंकड़ों का प्रकार्यात्मक विश्लेषण कर उन्होंने आत्महत्या को सामाजिक तथ्य के रूप मे प्रस्तुत किया। उनका निष्कर्ष था कि समाज की शक्तियां व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिये बाध्य करती हैं, जब व्यक्ति और समाज में अलगाव और सामाजिक मूल्य व व्यवस्था कमजोर या लोगों की आवश्यकता पूर्ति में असफल हो जाती है तब व्यक्ति आत्महत्या करता है ।
दुर्खीम का मानना था कि आत्महत्या छणिक आवेश या आकस्मिक घटना नही बल्कि एक सुनियोजित घटना है जो लंबे समय से मस्तिष्क में चल रही योजना का प्रतिफल है।
दुर्खीम के इसी तथ्य को आधार मानकर मैने 2009 में बीकानेर जिले में आत्महत्या करने वाले 20 व्यक्तियो की केश स्टडी की, तब भी यही प्रमाण सामने आये कि जिन्होंने आत्महत्या की उनके मूल व्यवहार में काफी लंबे समय से बदलाव हो रहा था। उनके परिजनों और मित्रों के साक्षात्कार से ये तथ्य मिले कि आत्महत्या करने वाले युवको का व्यवहार बदल रहा था। कुछ ने बताया कि जो बहुत ज्यादा गुस्से वाले थे वो कुछ समय से शांत रहने लगे थे, जो घर में रात्रि को देरी से आता था अपने मित्रो में ही मस्त रहता था वो कुछ दिनों से समय पर घर आने लगा, घर में अधिक समय देने लगा था। कुछ परिजनों ने कहा कि जो अपनी वस्तु को किसी को हाथ तक नही लगाने देता था वो कुछ समय से अपनी वस्तुओं को खुद दुसरो को देने लगा था ओर जो शांत और एकांत प्रिय था वो कुछ समय से सबके साथ मिलनसार व्यवहार करने लगा था और घर वाले यह देख कर खुश हो रहे थे।
इस तरह के अनेक परिवर्तन अध्ययन से ज्ञात हुए। यदि इन परिवर्तनों को सभी परिजन गम्भीरता से ले और किसी के भी परिवार में, किसी सदस्य में इस तरह के परिवर्तन नजर आये तो हम उनकी सहायता कर उसको आत्महत्या करने से रोक सकते हैं।
दुर्खीम ने अपनी पुस्तक में आत्महत्या के अनेक कारण बताए उन्होंने मनोव्यधिकीय, मनोजेविकिय, मौसम, जलवायु से सम्बंधित सभी आत्महत्या के पूर्व सिद्धांतो व कारणों की आलोचना के बाद आत्महत्या के पीछे सामाजिक कारको को ही उत्तरदायी बताया, उनके अनुसार शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित के मुकाबले आत्महत्या अधिक करता है। आस्तिक के मुकाबले नास्तिक, सन्तान वाले के मुकाबले सन्तानहीन अधिक आत्महत्या करता है। सयुक्त परिवार के मुकाबले एकाकी परिवार वाला अधिक आत्महत्या करता है। विवाहित के मुकाबले अविवाहित अधिक आत्महत्या करता है। गांव के मुकाबले शहरों में आत्महत्या अधिक होती है। राजनीतिक व सामाजिक रूप से स्थिति देशों के मुकाबले अस्थिर देशों में आत्महत्या अधिक होती है।
ये सभी कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक है। अधिकांश समाजशास्त्रियों का मानना है कि- सामाजिक जिम्मेदारी एक तरफ व्यक्ति को आत्महत्या से रोकती है दूसरी तरफ जब व्यक्ति सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ हो जाता है तब व्यक्ति आत्महत्या करता है, धर्म व्यक्ति को मानसिक सबल देता है आस्तिक व्यक्ति अपनी सफलता और असफलता के लिये खुद को उत्तरदायी ना मानकर भगवान को उत्तरदायी मानता है इस लिये वो विचलित नही होता, जबकि नास्तिक व शिक्षित व्यक्ति खुद को कर्ता मानता है हर घटना पर तर्क और चिंतित रहता है इस लिये छोटी-मोटी घटनाओं पर विचलित ओर अवसाद का शिकार हो जाता है और आत्महत्या कर बैठता है। सयुक्त परिवार और सन्तानवाला हर हाल में अपने परिवार के लिये जिंदा रहना चाहता है जबकि एकाकी परिवार वाला या सन्तानहीन यह सोचता है उसके अपने कोई नही उसके आगे पीछे कौन है और आत्महत्या कर लेता है। डॉ. मुखर्जी ने भी लिखा है सामाजिक जिम्मेदारी व्यक्ति को अधिक सहनशील, जिम्मेदार ओर संघर्ष योग्य बनाती है। आज हम छोटे परिवार और साधन सम्पन्नता के कारण बच्चो को जिमेदारी से दूर रखते है सारी सुविधाएं बिना मांगे मिलने से, वे युवा होने पर भी जिम्मेदारी से भागते है यह भी युवाओं में आत्महत्या का बड़ा कारण है।
वर्तमान भारत में हर वर्ष 1.40 लाख लगभग आत्महत्या होती है एन. सी. आर. बी. की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 1लाख 39हजार123 लोगों ने आत्महत्या की जो 2018 के मुकाबले 3.6% अधिक है, भारत में हर घण्टे 16 लोग आत्महत्या कर रहे है जिसमे 15 से 30 वर्ष की आयु वर्ग वाले अधिक है यानि युवाओं में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है।
राज्यो में आत्महत्या के आकड़ो में महाराष्ट्र प्रथम स्थान पर है उसके बाद क्रमस: तमिलनाडु, प. बंगाल, मध्यप्रदेश, कर्नाटक है आत्महत्या के कारणों में एनसीआरबी रिर्पोट 2019 के अनुसार- 32.4% पारिवारिक मामले, 5.5% वैवाहिक मामले, 12.5% आर्थिक मामले 4.5% प्रेम प्रसंग मामले, 2%बेरोजगारी, 5.6% नशा के मामले उत्तरदायी है इस तथ्यों के समाजशास्त्रीय विश्लेषण करे तो आत्महत्या के लिये मूलरूप से समाज ही जिम्मेदार है पारिवारिक, वैवाहिक, प्रेम प्रसंग, बेरोजगारी, आर्थिक हानि इन सबके पीछे सामाजिक शक्तियां उत्तरदायी है, आज व्यक्तिवादी सोच के कारण पुरानी ओर नई पीढ़ी में संघर्ष, नारी मुक्ति और समाज की रूढ़िवादी सोच, जातीय बाध्यता, धर्म का घटना महत्व, टूटते सयुक्त परिवार, भौतिकवादी सोच के कारण आध्यात्मिकता का ह्रास, सामुदायिक जीवन का पतन, समाज में बढ़ती आदर्शहीनता और पतित होती सामाजिक नियंत्रण की संस्थाओ के कारण, आज व्यक्ति ओर समाज में अलगाव उत्पन्न हो रहा है, युवाओं का मार्गदर्शन ओर नेतृत्व के अभाव के कारण, युवा दिशाहीन ओर अवसाद का शिकार हो है।
भारत के आधुनिक पाश्चात्य मूल्यों और आर्थिक रूप से सम्पन्न राज्यो महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक में सबसे अधिक आत्महत्या की दर इस तथ्यों को प्रमाणित करते है कि भारत में आर्थिक विकास, आधुनिकता व भौतिकवादी दर्शन के कारण व्यक्तिवाद में वृद्धि हो रही है जिससे व्यक्ति और समाज में अलगाव की स्थिति बढ़ती जा रही है युवाओं में आदर्शहीनता के कारण भटकाव बढ़ता जा रहा है, आज परिवार, माता पिता, शिक्षक, धर्मगुरु, नेता, बुद्धिजीवी, ओर सरकार समाज का कुशल नेतृत्व करने में ओर प्रकार्यात्मक दृष्टि से असफल हो रहे है।
ये सब समाज की संरचनात्मक नियंत्रण की इकाइयां है जैसे हमारे शरीर में मष्तिष्क, लिवर, ह्दय शरीर का कुशल संचालन करते है इनके द्वारा प्रकार्य ना करने पर शरीर बीमार या मृत्यु को प्राप्त हो जाता है वैसे ही समाज की नियामक संस्थाओ के कमजोर होने के कारण समाज में आत्महत्या की दर निरन्तर बढ़ रही है जिसका इलाज सामुदायिक रूप से ही सम्भव है व्यक्तिगत हल सम्भव नही है। हमे आत्महत्या को व्यक्तिगत घटना या केवल अवसाद का परिणाम मानकर कर, व्यक्ति का इलाज नही, समाज का इलाज करने की जरूरत है।
हमे यह स्वीकार करना होगा कि चाहे हम आर्थिक, भौतिक और विज्ञान की दृष्टि में सफल या प्रगतिशील है मगर सामाजिक व सामुदायिक दृष्टि से असफल ओर पिछड़ते जा रहे है जो समाज संस्कृति और सभ्यता के लिये धातक साबित होगा यह किसी देश या क्षेत्र की समस्या नही वैश्विक समस्या है वैश्विक रूप से इसका हल ढूंढना होगा।
डॉ. राजेन्द्र जोशी
सह-आचार्य समाजशास्त्र
श्री जैन कन्या पीजी महाविद्यालय, बीकानेर ।
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